अनिल शर्मा, रीवा। मध्यप्रदेश के रीवा जिले में एक ऐसा थानेदार है, जो अपने कर्तव्य और मानवीय मूल्यों की मिसाल बन चुका है। यह अधिकारी न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने में आगे है, बल्कि समाज में शिक्षा और राष्ट्रप्रेम की अलख भी जगा रहा है।
रीवा के इस थानेदार की पहचान सिर्फ अपराधियों से सख्ती से निपटने वाले पुलिसकर्मी की नहीं है, बल्कि गरीब बच्चों के गुरु और मार्गदर्शक की भी है। ड्यूटी खत्म होने के बाद, जब अन्य लोग आराम करते हैं, तब यह थानेदार अपने थाने को गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए ‘ज्ञान मंदिर’ में बदल देता है। यहां वह बिना किसी शुल्क के बच्चों को पढ़ाता है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
उनका मानना है कि शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है, जो अपराध और गरीबी दोनों से लड़ने में मदद कर सकता है। यही वजह है कि वे थाने में बैठकर बच्चों को गणित, विज्ञान, इतिहास और देश के गौरवशाली अतीत के बारे में पढ़ाते हैं। बच्चों के मन में न केवल पढ़ाई के प्रति लगन जगाते हैं, बल्कि उनमें राष्ट्रभक्ति और अनुशासन का भी भाव भरते हैं।
इस थानेदार का योगदान सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है। खास मौकों पर, वे बच्चों और स्थानीय लोगों के साथ देशभक्ति गीत गाकर और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर समाज में एकता और प्रेम का संदेश फैलाते हैं। उनकी गायकी में वह भाव और ऊर्जा होती है, जो हर दिल को मां भारती के सम्मान में झुका देती है।
स्थानीय लोग उन्हें ‘वर्दी वाला गुरुजी’ कहते हैं। उनका मानना है कि ऐसे कर्मयोगी पुलिसकर्मी समाज के लिए प्रेरणा हैं। वे दिखाते हैं कि वर्दी सिर्फ ताकत और अधिकार का प्रतीक नहीं है, बल्कि सेवा, संस्कार और त्याग का भी दर्पण है। रीवा का यह थानेदार बताता है कि अगर हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे और समाज में अपने स्तर पर योगदान दे, तो न सिर्फ अपराध घटेंगे, बल्कि एक सशक्त, शिक्षित और राष्ट्रभक्त भारत का निर्माण होगा। उनकी कहानी हर उस पुलिसकर्मी, शिक्षक और नागरिक के लिए प्रेरणा है, जो देश और समाज को बेहतर बनाने का सपना देखता है।